Tuesday, April 12, 2011

Anna- Hum Tumhare Saath....

संदर्भ - आडवानी जी - नेताओं का तिस्कार लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नही...
मेरी प्रतिक्रिया - हजारे जी ने आपकी टिप्पणी के जवाब में कहा है कि - वर्तमान भ्रष्ट नेताओं के चलते ही लोकतंत्र पर खतरा बना हुआ है।... एक जागरूक भारतीय नागरिक होने के नाते मै हजारे जी से पूरी तरह सहमत हूं । वास्तव में एक आम नागरिक होने के नाते मैं समझ सकता हूं कि लोकतंत्र के नाम पर किस तरह ये भ्रष्ट नेता हम पर, हमारे समाज पर, हमारी आजादी पर जुल्म कर रहे हैं। यही आडवानी हैं जो एक समय हिन्दूत्व के नाम पे/भगवान के नाम पे ‘‘अयोध्या कांड’’ को अंजाम देते हैं, पाकिस्तान को भारत राष्ट्र का सबसे बडा दुश्मन करार देते हैं। वही आडवानी जी पाकिस्तान के दौरे में अपना सुर बदल कर पाकिस्तान के संस्थापक मो. अली जिन्ना को ‘धर्मनिरपेक्ष नेता’ घोषित करने का कष्ट करते हैं। .........  पूरे भारत को धर्मान्धता की आंधी में झोंकने के बाद इन आडवानी जी का यह ‘‘जिन्न प्रेम’’ ना भारतवासीयों को रास आता है ना पाकिस्तानियों को।... आज वो हजारे की सभा से नेताओं को बाहर निकालने पर ‘लोकतंत्र’ की दुहाई दे रहे हैं, क्या वे यही दुहाई तब देते जब सभा से निष्कासित होने वाले नेता ‘कांग्रेसी’ होते। ...... आडवानी जी...  ’‘मै’’ जो ये ’ब्लाग/कमेंट’’ लिख रहा हूं - सब समझता हॅंू .... मै समझता हूं आपकी राजनीति, मै समझ सकता हॅू आपकी मजबूरी... लेकिन आप अपनी मजबूरी को हम पर -‘‘भारत की जनता’’ पर नही थोप सकते।  जिस ‘लोकपाल’ विधेयक को लेकर हजारे के साथ पूरा देश आंदोलित है, यही विधेयक आज से कई वर्षो से आपके कार्यकाल में भी लंबित रहा। तब आपने क्यो इस विधेयक को लागू नही किया या इसके लिए प्रयास क्यों नही किया..  अब क्यों आपको इस विधेयक की प्रासंगिकता नज़र आ रही है,  जैसे अब से पहले कांग्रेसीयों की मजबूरी थी... वही आपकी भी मजबूरियां रही होंगी...  आडवानी जी आपकी और आपकी पार्टी की वहीं और वही हार हो जाती है जब आप ’जन लोकपाल विधेयक’ लाने की बात करते हो।।  आज के पूर भारतीय राजनीतिक पारीदृश्य में .... क्या आडवानी(भाजपा)........ क्या कांग्रेस... क्या माक्र्सवादी....क्या समाजवादी....क्या बहुजन समाज पार्टी.....और अंततः क्या माओवादी.......... सब एक ही थैली के चट्टे बटटे हैं......    

शायद आपको यकीन न हो ... आइये आपको रूबरू कराते हैं आज के पार्टीगत् राजनीतिक मूल्यों और आदर्शो
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1.    कांग्रेस: आजादी के 65 साल के बाद भी इनको जातिगत् जनगणना कराने की आवश्यकता महसूस होती है, क्यो? अपनी       राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए.....  - जो व्यक्ति न केवल खुद के वरन् समस्त समाज(समुदाय)े के लिए हानिप्रद, कानून की नजर में अवांक्षित, सभ्य समाज में गुंडे मवाली की हैसियत रखते हों । उनको ही समाज की बागडोर सौंपना..... वो भी लोकतंत्र की आड में... जो जितना बडा गुंडा(चाहे पैसे से, चाहे बाहुबल से) उनकी ही चल रही है आज के लोकतंत्र में, उस लोकतंत्र मंे जिसकी दुहाई आज कांग्रेसी दे रहे है।, नेतागिरी है... तो इनकी दुकान है... इनकी दुकान है तो नेतागिरी है... कभी नेतागिरी एक जज़्बा हुआ करता था.... आज फैषन है... दबंगगिरी का पर्याय बना हुआ है।  चाहे महिला आरक्षण की बात हो या दलित उत्थान की... हर जगह लोकतांत्रिक संविधान की किस तरह बखिया उधेडी जा रही है, उसके लिए ज्यादा दूर नही ... इस सिवनी की राजनीति की ओर देखना ही प्र्याप्त है.....।
2.    भाजपा: आज इनकी सरकार है--- इसका मतलब ये ‘‘पाक साफ है’, पूरा भारत इनकी महानताओं के बल पे सरवाईव  कर रहा है,।  भ्रष्टाचार जो पहले था -- आज भी वही है - मंहगाई के साथ साथ भ्रष्टाचार भी उसी अनुपात में घट-बढ रही है गोया पूरे प्रदेश के साथ भारत की इकोनाॅमी भी इन्ही नेताओं के हाथ मे है। सब एक थैली के चटटे बटटे हैं।
3.    मओवादी - सालों गोली मारना ही है तो ‘‘गरीब आदिवासीयो’’ के अलावा और भी तो हैं... गरीबों को मौत की  सजा का देने के पहने इतना तो सोचो ... ‘‘अंधा मांगे एक आंख - उसको मिले हजार आंख’’ . एक गरीब/उपेक्षित  को हजार मिल रहा हो तो उनकी ‘की’ गलती मानी जा सकती है, लेकिन उन भ्रष्टाचारियों का क्या जो इनसे गलत काम करवाते हैं,। माओवादीयों आपको भी ये बात समझना होगा -- आप भी किसी ‘‘‘वाद’’ यानी किसी विचार को मानते होगे --- आप लोगों को शायद याद न हो लेकिन ‘माओवाद’ में भी किसी भ्रष्टाचार की गुंजाईश नही है। लेकिन आज के माओवादी भी उतनी ही भ्रष्ट हैं जितनी आज तारीख में (उनकी नजर मेे तथाकथित) लोकतांत्रिक सरकार। पैसे वे भी कमा रहे है, पैसं ये भी कमा रहे है। क्या एक व्यापारी की कमाई, एक इमानदार कमाई नही हो सकती? जिनको माओवादी सामंतवादी मानते है। और यदि ये व्यापारी सामंतवाद का प्रतीक हैं तो उनको उनके इलाके में व्यापार करने की इजाजत ही क्यों है, जबकि उस इलाके में वही होता है जो माओवादी चाहते है, क्यों व्यापारी से पैसे लेकर गरीबों को लूटने की इजाजत इन माआवादियों द्वारा दी जाती है,। स्वामी अग्निवेश, विनायक सेन, किरण बेदी और मैं स्वयं भी चाहता हूू कि देश का भला हो, देशवासीयों को न्याय मिले... लेकिन  अपने तमाम आदर्शो के बीच आज भी मै अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करता हूं।  कल जिन्ना था....उसके बाद कांग्रेस...उसके बाद भाजपा... उसके बाद.... तमाम सियासी पार्टी ... और आज माओवादी..... क्या होगा हमारा.... क्या होगा लोकतंत्र का... क्या होगा समाज का--- ?

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